बदायूं की बात – सुशील धींगडा के साथ
देश की आजादी के बाद बदायूं के मतदाताओं ने विकास को ध्यान में रखकर मतदान किया लेकिन जनता के दुख पर ध्यान देने की बात पर हमारे पालनहारों ने उतना ध्यान नहीं दिया जो बदायूं का विकास गति पाप्त करता। बदायूं में पहली बार कृष्ण स्वरूप वैश्य ने पहली बार बदायूं की जरूरत पर ध्यान देकर महाबदायूं की योजना बनवाने का काम किया लेकिन लगभग पचास वर्ष का लम्बा समय बीतने के बावजूद बदायूं महायोजना फाइलों से बाहर नहीं निकल पाई। हालाकि इसके लिए जनता को बदायूं का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद और विधायकों के बीच राजनेतिक मतभेद जिम्मेदार लगे और कुछ लोग इसके लिए बाहरी सांसद और विधायकों का चुना जाना दोषी कहते रहे, कारण जो भी हो लेकिन यह कटु सत्य रहा कि जनपद का विकास धरातल पर नहीं दिखा।
यही कारण रहा कि बदायूं से सांसद बनकर केंद्रीय मंत्री बनने वाले शरद यादव, सलीम इकबाल शेरवानी बदायूं के विकास कराने में जनता को पूरी तरह विफल नजर आए क्योंकि इस दौरान माड्रन फूड सहित तमाम फैक्ट्रियों के शिलान्यास तो हुए लेकिन सारे के सारे बस शिलान्यास तक सीमित रह गए।
क्षेत्र के विकास में सांसद की भूमिका का महत्व बदायूं वालों को तब हुआ जब धर्मेंद्र यादव बदायूं के सांसद बने और जनपद में तमाम सडकें, ओवरब्रिज, मेडीकल कालिज, गांवों में विद्युतीकरण, तमाम स्कूल और कालिज सामने आए और बदायूं से बरेली मार्ग फोरलेन हुआ लेकिन धर्मेंद्र यादव की पराजय के बाद आज आम आदमी को बदायूं फिर विकास के मामले में पूरी तरह अनाथ सा नजर आ रहा है।
